पहाड़ बेचो पहाड़ी बेचो । कैसे षड्यंत्र के तहत उत्तराखंडी को पलायन और गरीबी में जीने के लिए मजबूर किया गया।

साल 1949 तत्कालीन गढ़वाल के राजा ने भारत में विलय के लिए एक संधि प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा।

हिंदुस्तान को एक हिंदू राष्ट्र समझ कर उससे जुड़ने के लिए गढ़वाल तथा कुमाऊं के लोगों ने अपना पूरा समर्थन हिंदुस्तान की सरकार को दिया और गढ़वाल तथा कुमाऊं भारत में विलीन हो गए।


1968 तक आते आते गढ़वाल तथा कुमाऊं के लोगों को यह आभास होने लगा कि उनके साथ अत्याचार किया जा रहा है तथा उनके विकास के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है।

1968 से लेकर 1998 तक लूट का राज कहां जाए तो गलत नहीं है।
पहाड़ी क्षेत्रों को संसाधन से संपूर्ण माना जाता है तथा यहां लकड़ी उर्वरक और अन्य खनिज पदार्थों की भरमार है।

उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश का एक हिस्सा बनाने के पीछे यही साजिश रची गई थी।
पहाड़ों के संसाधनों को लूट कर अपनी जेब भरने के लिए पहाड़ी लोगों को दबाया जाने लगा उनका कत्लेआम किया गया और कई गांवों को तो नक्शे से मिटा दिया गया।


जब उसके खिलाफ आवाज उठने लगी चिपको आंदोलन शुरू हो गया और दुनिया को पता लग गया किस तरीके से 2 जनजातियों को ही खत्म करने की साजिश रची गई है और इस साजिश में नेता, अभिनेता और इंडस्ट्रीज शामिल है तब पूरा गेम प्लान ही चेंज कर दिया गया।

अब सीधे तौर पर हमला ना करके दूसरे तरीके से यहां के लोगों को परेशान किया जाने लगा।
पहाड़ी क्षेत्र को विकास की गंगा से दूर कर दिया गया यहां के लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया गया यहां की सभी सरकारी नौकरियां उत्तर प्रदेश के लोगों को दी जाने लगी यहां तक कि पुलिस तथा न्यायपालिका में भी उत्तराखंड के लोगों को जगह नहीं दी जाती थी यह है पर्वतीय क्षेत्र अपने देश में होते हुए भी अपने देश का ना हुआ।

यहां के शिक्षित लोगों को दूरदराज के ट्रांसफर दी जाने लगी वह बेईमान और भ्रष्ट लोगों की भर्ती पहाड़ों में की जाने लगी।
मानव तस्करी के लिए कुख्यात हो चुके उत्तराखंड से हजारों लोगों को या तो विस्थापित कर दिया गया या उन्हें बेच दिया गया या फिर उन्हें मार दिया गया उनके अंगों को बेच दिया गया।

उत्तराखंड के लोग अब अपने आप को एक पृथक राज्य के रूप में देखना चाहते थे लेकिन भ्रष्ट और बेईमान नेता तथा इंडस्ट्रीज यहां के संसाधनों पर अपना हक जताने के लिए उत्तराखंड के लोगों को सफाया करने के मिशन पर अमादा थी।

साल 1992 उत्तराखंड के लोगों को गोलियां मारी गई उनकी औरतों को निर्वस्त्र कर भूखे भेड़ियों की तरह पुलिस के लोगों ने बलात्कार के बाद मौत के घाट उतार दिया।

लेकिन यह सरकार अभी भी कहां रुकने वाली थी देहरादून से लेकर नैनीताल तक बाहरी लोगों को पुलिस में भर्ती कर क्षेत्रीय लोगों के ऊपर अत्याचार को बढ़ा दिया गया पुलिस ही यहां के लोगों को जान से मारने लगी इनकी रक्षा तो दूर इनको पुलिस द्वारा ही बेच दिया गया पुलिस ने सरेआम कईयों को गोली मारी कईयों की लाशें तक नहीं मिली कईयों को नदी में बहा दिया गया कईयों को कहां जेल में रखा गया आज तक पता नहीं चला।
पहाड़ियों को पहाड़ से दूर कर दिया गया इनकी जमीन है इनके संसाधन हड़प लिए गए इनके खिलाफ क्रूर से कुरूर कदम उठाए गए उत्तर प्रदेश के नेताओं ने उत्तराखंड के लोगों को कहीं का नहीं छोड़ा आज उत्तराखंड पलायन की मार झेल रहा है विकास के लिए तड़प रहा है शिक्षा के लिए तड़प रहा है उत्तराखंड की गढ़वाल यूनिवर्सिटी देश की सबसे घटिया 10 यूनिवर्सिटी में आती है उत्तराखंड के पढ़े-लिखे नौजवानों को नौकरियां नहीं मिलती है उत्तराखंड के संसाधनों पर बाहर से आए लोगों का कब्जा है इसकी एक मिसाल देहरादून गैर से अल्मोड़ा नैनीताल में गैर हिंदुओं की आबादी हिंदू आबादी से लगभग 2 गुना है जबकि यह लोग यहां के मूल निवासी भी नहीं है सभी अच्छी जगहों पर बाहरी लोगों का कब्जा है और पहाड़ी दिल्ली चंडीगढ़ में झक मरा रहे अपने संसाधनों के लिए उनके इस्तेमाल के लिए और अच्छे रोजगार के लिए अपना घर बार सब छोड़कर विदेशों में मजदूरी कर रहे हैं।


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