📢 एक शख्स ज़िबह की हुई मुर्गी लेकर कसाई की दुकान पर आया और कहा - भाई, ज़रा इस मुर्गी को काटकर मुझे दे दो।
कसाई बोला - मुर्गी रखकर चले जाओ और आधे घण्टे बाद आकर ले जाना।
इत्तेफ़ाक़ से ज़रा देर बाद ही शहर का काज़ी कसाई की दुकान पर आ गया और कसाई से बोला - ये मुर्गी मुझे दे दो!!
कसाई बोला - ये मुर्गी मेरी नहीं है बल्कि किसी और की है और मेरे पास भी अभी कोई और मुर्गी नहीं जो आपको दे सकूँ।
काज़ी ने कहा - कोई बात नहीं। ये मुझे दे दो, मालिक आए तो कहना कि मुर्गी उड़ गई है।
कसाई बोला - ऐसा कहने का भला क्या फायदा होगा? मुर्गी तो उसने खुद ज़िबह करके मुझे दी थी, फिर ज़िबह की हुई मुर्गी कैसे उड़ सकती है?
काज़ी ने कहा - मैं जो कहता हूँ उसे गौर से सुनो! बस ये मुर्गी मुझे दे दो और उसके मालिक से यही कहना कि तेरी मुर्गी उड़ गई है। वह ज़ियादा से ज़ियादा तुम्हारे खिलाफ मुकदमा लेकर मेरे पास ही आएगा!
कसाई बोला - 'अल्लाह सबका पर्दा रखे' और मुर्गी काज़ी को पकड़ा दी।
काज़ी मुर्गी लेकर निकल गया तो मुर्गी का मालिक भी आ गया और कसाई से पूछा - मुर्गी काट दी है?
कसाई बोला - मैंने तो काट दी थी, मगर आपकी मुर्गी उड़ गई है!!
मुर्गीवाले ने हैरान होकर पूछा - भला वह कैसे? मैंने खुद ज़िबह की थी तो उड़ कैसे गई?
दोनों में पहले नोक-झोंक शुरू हुई और फिर बात झगड़े तक जा पहुँची, जिस पर मुर्गीवाले ने कहा - चलो अदालत... काज़ी के पास चलते हैं!
और दोनों चल पड़े।
दोनों ने अदालत जाते हुए रास्ते में देखा कि दो आदमी लड़ रहे हैं, एक मुसलमान है जबकि दूसरा यहूदी। छुड़ाने की कोशिश में कसाई की उंगली यहूदी की आँख में जा लगी और यहूदी की आँख ज़ाया हो गई। लोगों ने कसाई को पकड़ लिया और कहा कि अदालत लेकर जाएंगे।
अब कसाई पर दो मुकदमे बन गए।
जब लोग कसाई को लेकर अदालत के करीब पहुँच गए तो कसाई खुद को छुड़ाकर भागने में कामयाब हो गया। मगर लोगों के पीछा करने पर करीबी मस्ज़िद में दाखिल होकर मीनारे पर चढ़ गया।
लोग जब उसको पकड़ने के लिए मीनार पर चढ़ने लगे तो उसने छलाँग लगा दी और एक बूढ़े आदमी पर गिर गया, जिससे वह बूढ़ा मर गया। अब उस बूढ़े के बेटे ने भी लोगों के साथ मिलकर उसको पकड़ लिया और सब उसको लेकर काज़ी के पास पहुँच गए।
काज़ी अपने सामने कसाई को देखकर हँस पड़ा क्योंकि उसे मुर्गी याद आ गई। मगर बाकी दो मामलों की जानकारी उसे नहीं थी। जब काज़ी को तीनों मामलों के बारे में बताया गया तो उसने सिर पकड़ लिया। उसके बाद चन्द किताबों को उल्टा-पुलटा और कहा - हम तीनों मुकदमात का एक के बाद एक फैसला सुनाते हैं।
मुर्गी मालिक को बुलाया गया, काज़ी ने पूछा - तुम्हारा कसाई पर दावा क्या है?
मुर्गी मालिक - जनाब, इसने मेरी मुर्गी चुराई है क्योंकि मैंने ज़िबह करके इसको दी थी, ये कहता है कि मुर्गी उड़ गई है। काज़ी साहब! मुर्दा मुर्गी कैसे उड़ सकती है?
काज़ी - क्या तुम अल्लाह और उसकी क़ुदरत पर ईमान रखते हो?
मुर्गी मालिक - जी हाँ, क्यों नहीं, काज़ी साहब!!
काज़ी - क्या अल्लाह तआला बोसीदा हड्डियों को दोबारा ज़िन्दा करने पर क़ादिर नहीं? तुम्हारी मुर्गी का ज़िन्दा होकर उड़ना भला क्या मुश्किल है?
ये सुनकर मुर्गी का मालिक खामोश हो गया और उसने अपना मामला वापस ले लिया।
काज़ी बोला - दूसरे को लाओ...
यहूदी को पेश किया गया तो उसने अर्ज़ किया - काज़ी साहब, इसने मेरी आँख में उंगली मारी है, जिससे मेरी आँख ज़ाया हो गई। मैं भी इसकी आँख में उंगली मारकर इसकी आँख ज़ाया करना चाहता हूँ!!
काज़ी ने थोड़ी देर सोचकर कहा - मुसलमान पर गैर-मुस्लिम की नीयत निसफ़ है। इसलिए पहले ये मुसलमान तुम्हारी दूसरी आँख भी फोड़ेगा, उसके बाद तुम इसकी एक आँख फोड़ देना!!
यहूदी बोला - बस, रहने दें! मैं अपना मामला वापस लेता हूँ।
काज़ी बोला - तीसरा मुकदमा भी पेश किया जाए...
मरनेवाले बूढ़े का बेटा आगे बढ़ा और अर्ज़ किया - काज़ी साहब, इसने मेरे बाप पर छलाँग लगाई, जिससे वह मर गया।
काज़ी थोड़ी देर सोचने के बाद बोला - ऐसा करो, तुम उसी मीनारे पर चढ़ जाओ और कसाई पर उसी तरह छलाँग लगा दो, जिस तरह कसाई ने तुम्हारे बाप पर छलाँग लगाई थी!!
नौजवान ने कहा - काज़ी साहब, अगर ये दाएँ-बाएँ हो गया, तब तो मैं ज़मीन पर गिरकर मर जाऊँगा!!
काज़ी ने कहा - ये मेरा मसला नही है, मेरा काम इंसाफ करना है! तुम्हारा बाप दाएँ-बाएँ क्यों नहीं हुआ?
नोजवान ने अपना दावा वापस ले लिया।
==========================
निष्कर्ष : अगर आपके पास काज़ी को देने के लिए मुर्गी है तो फिर काज़ी भी आपको बचाने का हर हुनर जानता है! उम्मीद है आप इस कहानी का मुतालब समझ गए होंगे। ⚽️
और फिलहाल तो वह इस्लामिक स्टडी करके IAS बन रहे हैं--
Comments
Post a Comment