kargil war कारगिल युद्ध और पाकिस्तानी सैनिक।

कोई आदमी या फिर कोई देश इतना घटिया हो सकता है इसकी अगर एक मिसाल दी जाए जो पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ तथा पाकिस्तान की आर्मी एक घटिया देश पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर आएगा।
3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध लड़ा गया।
अशुद्ध को भारत की तरफ से ऑपरेशन सफेद सागर का नाम दिया गया वहीं पाकिस्तान की ओर से कहा गया कि युद्ध तो हम लड़ी नहीं रहे हैं यह तो आतंकवादी है जो भारतीय चौकियों पर कब्जा कर के बैठे हैं।
यानी सीधे-सधे तौर पर कहा जाए कि जो पाकिस्तानी सैनिक पाकिस्तान की ओर से युद्ध कर रहे थे वह सभी भाड़े के टट्टू थे या फिर कहीं भाड़े के आतंकवादी।
पाकिस्तान एक ऐसा घटिया देश है जो युद्ध के समय अपने सैनिकों को युद्ध में उतारता तो है लेकिन उनकी लाश तक वापस नहीं ले जाता है ऐसे देश के लिए अपनी जान दांव पर लगाने वाले सैनिक अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करते हैं।
फिर भी जिहाद के तराने सुन सुन कर बहुत सारे जिहादी पाकिस्तान की सेना में भर्ती होते इनका मुंह मकसद सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना नहीं होता बल्कि इनका मूल मकसद होता है भ्रष्टाचार दरिंदगी और जिहाद।
पाकिस्तानी सेना में भर्ती होने वाला कोई भी सैनिक बहुत आसानी से और बहुत जल्दी अमीर हो जाता है पाकिस्तानी सेना में भ्रष्टाचार इस तरह की से है जैसे कि पुलिस में भ्रष्टाचार होता है यहां किसी ना यहां की पुलिस से भी ज्यादा भ्रष्ट है।
अब अगर बात करें पाकिस्तानी सेना द्वारा लड़े गए कारगिल युद्ध की तो पाकिस्तानी सेना ने कभी यह माना ही नहीं कि उसके सैनिक युद्ध में लड़ने गए हैं ना ही पाकिस्तानी सेना ने कभी यह माना कि उसने कारगिल युद्ध लड़ा है ना ही पाकिस्तानी सेना की तरफ से जंग में गए और जांबाज जी दिखाने वाले किसी भी सैनिकों कोई मेडल मिला ना ही पाकिस्तान की तरफ से लड़ने वाले किसी सैनिक को कोई अवार्ड मिला यहां तक कि पाकिस्तानी सैनिक जो भारतीय सीमा के अंदर मारे गए थे उनकी लाशें तक वापस उनके घर वालों को नहीं दी गई।
ऐसे घटिया देश की सेना में भर्ती होने वाले तथा ऐसे घटिया देश में रहने वाले लोग यकीनन एक घटिया बिरादरी के लोग होंगे।

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